ये सच हैं, तबाही की हम हद से गुजर जाते
आते ना जो तुम अब भी लाजिम है के मर जाते
माना के खफा हो तुम, अहबाब तो हो मेरे
हम को ना बुलाते पर कभी तुम तो इधर आते
इस इश्के-मफासत में जब एक ही मंजिल हैं
हम छोड़ तेरा दर फिर जाते तो किधर जाते
ये दिल ही था,कश्ती जो तूफां से बचा लाया
सुनते जो अक्ल की हम साहिल पे ही मर जाते
कट गया भले ही सर मगर जाहिर ना की मज़बूरी
झुकता जो किसी दर पे खुद की नजरों से उतर जाते
भागे थे लड़ाई से, और फिर भी ना बच पाए
आते ना जो तुम अब भी लाजिम है के मर जाते
माना के खफा हो तुम, अहबाब तो हो मेरे
हम को ना बुलाते पर कभी तुम तो इधर आते
इस इश्के-मफासत में जब एक ही मंजिल हैं
हम छोड़ तेरा दर फिर जाते तो किधर जाते
ये दिल ही था,कश्ती जो तूफां से बचा लाया
सुनते जो अक्ल की हम साहिल पे ही मर जाते
कट गया भले ही सर मगर जाहिर ना की मज़बूरी
झुकता जो किसी दर पे खुद की नजरों से उतर जाते
भागे थे लड़ाई से, और फिर भी ना बच पाए
इस से तो अच्छा था की हम लड़ कर ही मर जाते.........