Thursday, 11 August 2011

हाल - ए - दिल

महफ़िल जब लगी थी यारो की ,
मुझको भी बुलावा आया था .
कैसे न  जाती  मै ,
उसकी कसम देकर जो बुलाया था .
जब कहने को कुछ कहा गया ,
तो ख्याल उसका ही आया था .
फिर अक्षर - अक्षर जोड़ के ,
मैंने हाल - ए - दिल सुनाया था .
तब आंसू उनकी यादो के ,
ना - ना करते निकल गए ,
जो समझ सके वो खामोश रहे ,
बाकी वाह - वाह करते निकल गए
वाह - वाह करते निकल गए .

2 comments:

  1. वाह। बहुत खूब। जो समझ सके वो खामोश रहे, बाकी वाह-वाह करते निकल गए। बधाई हो, आपको।

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