Friday 12 August 2011

हद से गुजर जाते

ये सच हैं, तबाही की हम हद से गुजर जाते
आते ना जो तुम अब भी लाजिम है के मर जाते

माना के खफा हो तुम, अहबाब तो हो मेरे
हम को ना बुलाते पर कभी तुम तो इधर आते

इस इश्के-मफासत में जब एक ही मंजिल हैं
हम छोड़ तेरा दर फिर जाते तो किधर जाते

ये दिल ही था,कश्ती जो तूफां से बचा लाया
सुनते जो अक्ल की हम साहिल पे ही मर जाते

कट गया भले ही सर मगर जाहिर ना की मज़बूरी
झुकता जो किसी दर पे खुद की नजरों से उतर जाते

भागे थे लड़ाई से, और फिर भी ना बच पाए
इस से तो अच्छा था की  हम लड़ कर ही मर जाते.........

सच

सब के सब चुपचाप खड़े हैं ये कैसी लाचारी हैं
तानाशाही लगता हैं के लोक तंत्र पर भारी हैं
झूट कपट वालों ने देखो सच्चाई को मारा हैं
काले अंगरेजों से फिर दिल्ली में गाँधी हारा हैं
योग गुरु बाबा को नेताओं ने कैसा रूप दिया
राजनीती ने मानो सत्याग्रह के मूह पर थूक दिया
बड़े इशारे पाकर के वर्दी ने ऐसा काम किया
दिल्ली की मिटटी को मासूमों के खूं से लाल किया
राम लीला मैदान में जलियाँ वाली आज कहानी हैं
ये सरकार तो भारत में डायर की आज निशानी हैं
राजभवन में देशद्रोहियों को जैसे इनाम मिला
संसद हमले के आरोपी को भी सम्मान मिला
राजभवन में बैठे नेता सारे आज संभल जाओ
इससे पहले हम बदलें तुम अपने आप बदल जाओ
ऐसा ना हो भगत सिंह कही फिर बंदूकें बो जाये
बदला लेने की खातिर जिंदा उधम सिंह हो जाये
दरबारों के परपंचो से धीरज मेरा डोल गया
सच की खातिर आज  - ये - ख्वाब मरने की भाषा बोल गया....

नींद कहीं आँखों में चुभती ना चली जाये


चिंगारी कहीं आग में ढलती ना चली जाये
गर्मी-ए-सियासत कहीं बढती ना चली जाये

खा तो रहा हैं मुल्क रोज जख्मे-सियासत
ये चोट हैं, नासूर में ढलती ना चली जाये

सर कटाया था जिसको बचाने के वास्ते
डर हैं कहीं आज वो पगड़ी ना चली जाये

बढ़ तो रहें हैं तेरे सितम पर ये सोच ले
मेरी भी हिम्मत कहीं बढती ना चली जाये

सोये हैं इस कदर तेरे ख्वाबों की चाह में
कहीं नींद ये आँखों में चुभती ना चली जाये......

मेरी पहचान

मुश्किल हूँ बहुत थोडा सा आसान कर मुझे
मिल जाये जमीं से जो, आसमान कर मुझे

हो फूल सा दिल जिसमे ना हो कोई फरेबी
बच्चों की तरह या खुदा नादान कर मुझे

बढती हैं कैसे रौशनी आँखों की देखना
दो चार दिन ख्वाबों में मेहमान कर मुझे

ये उम्रे-रफ्ता थाम दे और ज्यादा क्या कहूँ
कर इतना करम मौला फिर जवान कर मुझे

पहचान मेरी सिर्फ हिन्दोस्तान हो यारब
कोई नसब ना कोई खानदान कर मुझे.........

Thursday 11 August 2011

हाल - ए - दिल

महफ़िल जब लगी थी यारो की ,
मुझको भी बुलावा आया था .
कैसे न  जाती  मै ,
उसकी कसम देकर जो बुलाया था .
जब कहने को कुछ कहा गया ,
तो ख्याल उसका ही आया था .
फिर अक्षर - अक्षर जोड़ के ,
मैंने हाल - ए - दिल सुनाया था .
तब आंसू उनकी यादो के ,
ना - ना करते निकल गए ,
जो समझ सके वो खामोश रहे ,
बाकी वाह - वाह करते निकल गए
वाह - वाह करते निकल गए .

कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं

जब याद का किस्सा खोलू तो ,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.
मै गुज़रे पल को सोंचू तो ,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं .
अब जाने कौन सी नगरी में ,
आबाद हैं जाकर मुद्दत से ,
मै देर रात तक जागु तो
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं .
कुछ बाते थी फूलों जैसी ,
कुछ लहजे खुशबू जैसे थे .
मै शेहर - ए - चमन में टहलू तो .
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं .
वो पल भर की नाराजगियां ,
और मान भी जाना पल भर में ,
अब खुद से भी मै रूठू तो ,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं ,

Wednesday 10 August 2011

बचा ले मुझे

या तो खुले दिल  से अपना ले मुझे,
या फिर तहे  दिल से आजमा ले मुझे.
खुद में कब तक मै सिमटता रहूँगा भला.
उस से कह दो के दिल से निकाले मुझको.
इससे  पहले  मै लाद्खादा  के गिरू 
मैकदे  से कह दो संभाले मुझको.
क्या कहा था उसने क उसे गम नहीं मिले
मै समंदर हु आ कर खंगाले मुझे
मर रहा हु यहाँ हर एक लम्हा मै
मुझे मार दे ए - खुदा और बचा ले मुझे .